भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिन वसंती लौट आए ! / योगेन्द्र दत्त शर्मा
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:27, 15 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योगेन्द्र दत्त शर्मा |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आप आये
दिन वसंती लौट आये!
यह गुलाबी गंध का विस्तार
ये बहकी हवाएं
बांचती हैं कुनमुने वातास की
झिलमिल कथाएं
आप आये
अनकही
सौगंध ने पर फड़फड़ाये!
खिल गई सरसों अचानक
हुईं कस्तूरी उड़ानें
खिंच गईं फिर पुष्पधन्वा की
सुआपंखी कमानें
आप आये
छंद के
बंधन लजीले कसमसाये!
कजरियों के बोल सुन-सुनकर
हुआ मन आदिवासी
उड़ गई कूर्पर-सी
घिरती हुई विरहा-उदासी
आप आये
तितलियों के
पंख-से पल सुगबुगाये!