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आख्यान / विष्णुचन्द्र शर्मा
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सूखी नदी ने
न अपना दिल खोला
न उदासी का बताया आख्यान
बस पत्थरों से, बोलती रही
बस अपना हाड़मांस देखती रही!
मैंने कहा, ‘नदी! मेरा दुःख तुमसे छोटा है।’