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ले जाऊंगा भारत / विष्णुचन्द्र शर्मा

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एक प्रश्न
रास्ता रोके खड़ा है
सामने।
यहाँ मैं
और मूलमंत्र समय का
मेरे भीतर अटका है
यह बस रहा है
मैक्सिको की पूरी
लोककला नृत्य है
या है पेंटिंग
जिसे मैं समेट कर
ले जाऊँगा भारत!

कुचामा
(लॉस एंजेलस से कुचामा तक कविताएँ लिखीं। सिर्फ 4 अगस्त 2009 को पहली बार डायरी लिखी। इन कविताओं में भी मैं और यानी-मन है।)