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पारपत्र नहीं चाहिए / विष्णुचन्द्र शर्मा

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मेरी पृथ्वी
एक मंच है
जहाँ हाथ थामे लोग
नाच रहे हैं।
मेरी पृथ्वी
एक अंतरंग यात्रा है
जहाँ हर यात्री
लहर-दर-लहर
नृत्यरत है।
मेरी पृथ्वी की
कोई सरहद नहीं है
यहाँ कोई
पार-पत्र नहीं चाहिए।
सिर्फ स्वर
शब्द को
ध्वनि ब्रह्मांड को
उदात्त बनाती है
धीरे-धीरे नाद को खोलती चली जाती है
और लय में बाँध देती है
हमें...।