भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अकेला / विष्णुचन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:23, 17 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णुचन्द्र शर्मा |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
वीराने घरों के
अफसाने बहुत हैं
आँखों के तेरे
पैमाने बहुत हैं
अकेला मैं हूँ
मयखाने बहुत हैं