भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्तब्धता / विष्णुचन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:36, 17 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णुचन्द्र शर्मा |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उसने पूछा...
‘पढूँगी कहाँ आपकी कविताएँ!’
मैंने धूप से कहा...
‘छापोगी कविताएँ।’
रूके स्टेशन के
यात्री से कहा, ‘सुनोगे कविता!’
चलती ट्रेन पर वह
लपक कर चढ़ गई!
बस मैं और धूप
रह गए कविता के पास प्रसन्न!
धौलपुर स्टेशन स्तब्ध रहा
सुनकर कविताएँ!