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सांस्कृतिक योगदान! / तरुण

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मैं निहत्था: फौज-पल्टन मेरे साथ नहीं;
मैं अ-बोला: प्रचार-तन्त्र मेरे हाथ नहीं;
मैं एकाकी: चाँद के साथ लगे तारों-जैसे
अडिग अनुयायियों का सहवास नहीं।

साधन-हीन: डॉलरों के लिए तस्करी का अभ्यास नहीं।
विद्युत-चालित यन्त्र का अदना पुर्जा बना घूमता हूँ!
पीठ पर, मन पर, पड़ते जुल्मी चाबुकों को चूमता हूँ!

हा, विवश मैं-
कैसे चुकाऊँ महाऋण अपने दाता का, कर्तार का?
रक्त, साँस, स्वप्न, गीत के प्रेरक मेरे जीवनाधार का?

बस, इतनी ही रह गई है अब तो नियति और गति-
क्रूर, अन्यायी, कुचक्री आततायी सत्ता के प्रति-

मेरी कठोर तितिक्षा, मेरी घृणा, मेरा नपुंसक क्रोध
दाँत-भिची निखालिस बे-औलाद लांछना, फटकार, और-
मेरा निष्क्रिय प्रतिशोध, प्रतिरोध;
यही रह गया है रे मानवता के लिए
अब तो-मौन-विनम्र, बहुमूल्य मेरा सांस्कृतिक योगदान-
स्वीकार करो मेरे अन्तर्यामी, हे करुणावान्!

ओस-जड़ी मेरी भाव-पँखुड़ी अंगीकार करो जी में-
चाहो तो फाड़ फेंको-अपनी रद्दरी की टोकरी में!

1983