भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हिमांचला / तरुण
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:42, 20 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर खंडेलवाल 'तरुण' |अनुवादक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उधर, अस्त हो गया दिवाकर,
इधर, प्रकट हो रहा चन्द्रमा;
ज्यों, जग-शिशु को पिला एक स्तन-
खोल रही दूसरा, प्रकृति-माँ!
धवल चाँदनी का कोमलतम-
अपना आँचल डाल रुपहला-
सुला रही चिर-पीड़ित जग को
स्नेहमयी रजनी हिमांचला!
1952