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मेरी आँखों में झांककर देखें / विजय किशोर मानव
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मेरी आंखों में झांकर देखें।
जिसमें रहते हैं वो शहर देखें॥
पास से दूर, बहुत दूर तलक
बुतों के साथ खंडहर देखें।
दियों ने रात की स्याही पी थी
हैं उजालों में दर-ब-दर देखें।
डूबना है तो घाट क्या देखें
जो डुबोती है वो लहर देखें।
ले के ख़्वाहिश सड़क पे निकले हैं
हो तो कोई नया क़हर देखें।
आईनों पर उदासियां चस्पां
है कहां पर हंसी, किधर देखें।
हमको उड़ना नहीं कसम से मगर
मन बहुत है कि अपने पर देखें।