Last modified on 20 मार्च 2017, at 15:22

मेरी आँखों में झांककर देखें / विजय किशोर मानव

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:22, 20 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय किशोर मानव |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरी आंखों में झांकर देखें।
जिसमें रहते हैं वो शहर देखें॥

पास से दूर, बहुत दूर तलक
बुतों के साथ खंडहर देखें।

दियों ने रात की स्याही पी थी
हैं उजालों में दर-ब-दर देखें।

डूबना है तो घाट क्या देखें
जो डुबोती है वो लहर देखें।

ले के ख़्वाहिश सड़क पे निकले हैं
हो तो कोई नया क़हर देखें।

आईनों पर उदासियां चस्पां
है कहां पर हंसी, किधर देखें।

हमको उड़ना नहीं कसम से मगर
मन बहुत है कि अपने पर देखें।