भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चेहरे शाह शरीर ग़ुलामों के / विजय किशोर मानव
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:24, 20 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय किशोर मानव |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चेहरे शाह शरीर ग़ुलामों के
टुकड़े पाते लोग सलामों के
आदी हुए आदमी झुकने के
ऊंचे क़द हैं खोटे दामों के
कोटेदार बर्फ़ के भड़भूजे
भाड़ लिख दिए नाम निज़ामों के
घर के शेर मोहते बस्ती को
गहने पहने हुए लगामों के
छत पर खड़े बड़ा कहते ख़ुद को
बिकते हैं तो सिर्फ़ छदामों के
कौन परे पथराव हवेली पर
सब हैं दावेदार इनामों के