Last modified on 20 मार्च 2017, at 15:32

मारे हुए हैं आदमी यहाँ / विजय किशोर मानव

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:32, 20 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय किशोर मानव |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मारे हुए हैं आदमी यहां
हारे हुए हैं आदमी यहां

आंसू से, पसीने से भीगकर
खारे हुए हैं आदमी यहां

सूरज हैं आप, और भोर के-
तारे हुए हैं आदमी यहां

सर पर लिए हवेली, ईंट और
गारे हुए हैं आदमी यहां

इनके-उनके जुलूसों के लिए
नारे हुए हैं आदमी यहां

इतनी चोटें लगीं कि नोकदार
आरे हुए हैं आदमी यहां

दामन में दाग़, रामनामियां,
धारे हुए हैं आदमी यहां