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मारे हुए हैं आदमी यहाँ / विजय किशोर मानव
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मारे हुए हैं आदमी यहां
हारे हुए हैं आदमी यहां
आंसू से, पसीने से भीगकर
खारे हुए हैं आदमी यहां
सूरज हैं आप, और भोर के-
तारे हुए हैं आदमी यहां
सर पर लिए हवेली, ईंट और
गारे हुए हैं आदमी यहां
इनके-उनके जुलूसों के लिए
नारे हुए हैं आदमी यहां
इतनी चोटें लगीं कि नोकदार
आरे हुए हैं आदमी यहां
दामन में दाग़, रामनामियां,
धारे हुए हैं आदमी यहां