भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नींद आई तो ख़्वाब देखेंगे / विजय किशोर मानव

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:39, 20 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय किशोर मानव |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नींद आई तो ख़्वाब देखेंगे
इस दफ़ा बेहिसाब देखेंगे

तमाम आस-पास के चेहरे
उतारकर नक़ाब देखेंगे

जिसको मिलना है धूल में आख़िर
शाख़ पर वो गुलाब देखेंगे

सोई बस्ती में हुक्मरानों की
जागता इंक़लाब देखेंगे

सबके खाते वहां खुले होंगे
क्या है, किसका हिसाब देखेंगे

ताजपोशी फ़क़ीर की होगी
चुप खड़े ये नवाब देखेंगे

घेर लेंगे उन्हें सवालों से
देंगे कैसे जवाब देखेंगे