भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सेक्स एक भूख है / कर्मानंद आर्य

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:28, 30 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कर्मानंद आर्य |अनुवादक= |संग्रह=अ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पहले मेरी बहन गई
फिर मेरे दोस्त की
अब अमूमन हर किसी की बहन जाती है पार्क

वे तंग जगहें हैं
जहाँ नहीं होता पार्क और फूल
जहाँ नहीं होती नदियाँ

विकृतियों का जमघट होता है
अपने ही करते हैं व्यभिचार
मेरी बेटी बताती है
‘एक कहानी उसको भी पता है’

मैं पूछते हुए डरता हूँ
अपनी ही बेटी से
बंद कमरे कैसे सड़ जाते हैं
बंद गली कैसे ख़त्म हो जाती है


पार्कों का होना अच्छा है
पहले मेरी बहन गई
फिर मेरे दोस्त की
अब अमूमन हर किसी की बहन जाती है पार्क