Last modified on 30 मार्च 2017, at 11:08

साथ / कर्मानंद आर्य

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:08, 30 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कर्मानंद आर्य |अनुवादक= |संग्रह=अ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पेड़ चाहता है ऊँचा उठे
धरती चाहती है फैले
सूरज चाहता है किसी भी तारे से
अधिक चमकदार और गहरा दिखाई दे उसका चेहरा
हवा चाहती है निर्झर
नदी चाहती है समुद्र से सुन्दर हो उसकी काया
सड़क चाहती है सभ्यतायें उसकी हमसफ़र हों
मैं मनुष्य होकर
कुछ नहीं चाहता था
सिवाय इसके कि दुनिया बच्चेदार और खूबसूरत बनी रहे
हवा चले तो गीत बजें
हाथ सलामत रहें तो रोटी का जुगाड़ रहे
सच बोलें तो दोस्त खड़े हों साथ
तरक्की हो
कसरत करें तो मोहतरमा की सेहत बढ़े

मैंने वह सब किया है जो मनुष्य होने के नाते करते हैं लोग
पर आज मुआफ़ी मांग रहा हूँ दोस्त
मैंने अगली सदी के लिए कुछ नहीं किया
नदियों को पंगु किया
पेड़ों के तोड़ दिए पाँव
खोद डाला चट्टानों का दिल
और तो और
ड्रग्स तक बेचा है मेरी सदी के लोगों ने

प्रकृति के सहारे जीने वाले मेरे दोस्त
न्याय के कटघरे में खड़े अपने इस दोस्त को बताओ
अगली सदी का मनुष्य किसके पापों की सजा पायेगा