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65 / हीर / वारिस शाह

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हथ बधड़ी रहां गुलाम तेरी सने त्रिंजणी नाल सहेलियां दे
होसन नित बहार दे रंग गूहड़े विच बेलयां देनाल बेलियां दे
सानूं रब्ब ने यार मिला दिता भुल गये पयार अलबेलियां दे
दिहें बेलियां दे विच करीं मौजां राती खेडसां विच हवेलियां दे

शब्दार्थ
<references/>