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84 / हीर / वारिस शाह
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हीर आखदी रांझिणा बुरा कीतो साडा कम है नाल वैराइयां दे
साडी खोज नूं तक के करे चुगली दिने रात है विच बुरिआइयां दे
मिले सिरां नूं एह विछोड़ देंदा भंग घतदा विच कुड़माइयां दे
बाबल अंमड़ी थे जाए ठिठ करसी जाए आखसी पास भरजाइयां दे
शब्दार्थ
<references/>