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90 / हीर / वारिस शाह

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कैदो आखदा थी वयाह मलकी दोहाई रब्ब दी मन्न लै डायने नी
इके मारके वढ के करीं बेरे<ref>टुकड़े</ref> मुंह भन्न सु चुआयने नाल सायने नी
वेख वेख धीउ दा लाड की दंद कढें अंत झूरसैं रन्ने कसायने नी
इके बन्न के भोरे चा घतीं लिंब वांग भडोले दे आयने नी
गुस्से नाल मलकी तप लाल पई झब दौड़ तू मिठिये नायने नी
सद लया तूं हीर नूं ढूंढ़ के ते तैनूं मां सदेंदिये है डायने नी
खड़ दुंबीये मनिये भेड़िये नी मुशटंडिये बार दीये डायने नी
वारस शाह वांगूं किते डुब मोईये घर आ सयापे दिये नायने नी

शब्दार्थ
<references/>