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94 / हीर / वारिस शाह

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मलकी आखदी चूचका बणी औखी सानूं हीर दयां मेहणयां खवार कीता
ताहना देण शरीक ते लोक सारे चौतरफिओं ख्वार संसार कीता
वेखो लज सयालां दी लाह सुटी नढी हीर ने चाक नूं चाक कीता
जां मैं मत दिती अगों लड़न लगी लज लहाके चशमां नूं चार कीता
कढ चाक नूं खोह लै महीं सभे असां चाक तों जीउ बेजार कीता
इके थी नूं चा घड़े डोब करीए जानो रब्ब ने चा गुनाहगार कीता
झब विआह कर थी नूं कढ देसों सानूं ठिठ है एस मुरदार कीता
वारस शाह नूं हीर खराब कीता नाहीं रब्ब साहिब सरदार कीता

शब्दार्थ
<references/>