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96 / हीर / वारिस शाह
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रातीं रांझे ने कहीं जा आण ढोइयां चूचक सियाल मथे वट पाया ई
भाई छड महीं उठ जा घरीं तेरा तौर बुरा दिस आया ई
सिआलां किहा भाई साडे कम नाहीं जाए उधरे जिधरों आया ई
असां साहन ना रखया एह नढा धीयां चारना नहीं बनाया ई
शब्दार्थ
<references/>