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105 / हीर / वारिस शाह
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रांझा आखदा हीर नूं मां तेरी सानूं फेर मुड़ रात दी चंबड़ी ए
मियां मन लै उसदे आखने नूं तेरी हीर पयारी दी अंबड़ी ए
किते जाइए उठ के घरीं बहीए अजे वयाह दी विथ ते लंबड़ी ए
वारस शाह इस इशक दे वनज विचों किसे पले न बधड़ी दमड़ी ए
शब्दार्थ
<references/>