भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
131 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:08, 31 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कैदो आनके आखदा सहुरयो ओये मैंथो कौन चंगा मत देसिआ ओये
एह नितदा पयार न जाए खाली पिंज गडी दादास ना देसिया ओये
हथों मार सियालां ने गल्ल टाली परा छड झेड़ा एह भेरसिया ओये
रग इक वधीक है लंडयां दीए किरतघण फरफेज मलखेसिया ओये
शब्दार्थ
<references/>