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133 / हीर / वारिस शाह
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किस्सा हीर नूं तुरत सहेलियां ने जा कन्न दे विच सुनाया ई
तैनूं मेहना चाक दा दे कैदो उस परहे विच शोर मचाया ई
बाग ढोल हराम शैतान देजी डंका विच बजार दे लाया ई
एह गल जे जाऊसी अज खाली तूं हीर क्यों नाम धराया ई
कर छडनी इसदे नाल ऐसी सुने देस जे कीतड़ा पाया ई
वारस शाह अपराधीयां रैहम नाहीं लंडे रिछ ने मामला चाया ई
शब्दार्थ
<references/>