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143 / हीर / वारिस शाह

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धरोई रब्ब दी न्यायों कमायो पैंचो भरे देस विच फाटया कुटवा हां
मुरशद बखशया सी ठूठा भन्नया ने धुरों जढ़ां थी ला मैं पुटया हां
मैं मारया वेखदे मुलक सारे धूह करंके मोए वांग कुटया हां
हड गोडड़े भन्न के चूरा कीते अड़ीदार गदों वांग सुटया हां
वारस शाह मियां वडा गजब होया रो रो के बहुत नखुटया हां

शब्दार्थ
<references/>