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145 / हीर / वारिस शाह
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मुंह उंगलां घत के कहनसभे कारे करन थीं एह ना संगदा ए
साडियां मंमियां टोंहदा छेड़ गलां पिछों होएके सुथणां सुंघदा ए
सानूं कठियां करें ते आप पिछों सान होएके टपदा रिंगदा ए
नाल बन्न के जोग नूं जोअ देंदा गुतां बन्न के खिचदा टंगदा ए
तेड़ां लाह घाई ते फिरे भौंदा भऊं भऊं मूतदा ते नाले त्रिंगदा ए
वारस शाह उजाड़ विच जाय के ते फुल साढियां कनां दे सुंघदा ए
शब्दार्थ
<references/>