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154 / हीर / वारिस शाह
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महर देखके दोहां इकठयां नूं गुस्सा खायके होया ई रत बन्नां
एह देखो अपराध खुदाय दा ए बेले विच अकलियां फिरन रन्नां
अखीं नीवियां रख के ठुमक चली कछेमार के चूरी दा थाल छन्नां
चूचक आखया रख तूं जमा खातर तेरे सोटयां दे नाल लिंग भन्नां
शब्दार्थ
<references/>