भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
201 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:38, 31 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दुर्रे<ref>कोड़े</ref> शरह दे मार उधेड देसां करां उमर खिताब दा नयां हीरे
घत कखां दे बिन मैं साड़ सुटां तैनूं वेखसी पिंड गरां हीरे
अखीं मीट के वकत लघा मोईए एह जोबना बदलां छां हीरे
खेड़े करीं कबूल जे खैर चाहवें छड चाक रंझेटे दा नां हीरे
वारस शाह हुण आसरा रब्ब दा ए जदों विटरे<ref>नाराज</ref> बाप ते मां हीरे
शब्दार्थ
<references/>