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217 / हीर / वारिस शाह

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रांझे आखया सियाल रत्न गए सारे अते हीर भी छड ईमान चली
सिर हेठां नूं कर लया फेर चूचक जदों सथ विच आनके गल हली
धीयां वेंचदे कौल जबान हारन महराब मथे उते पौन ढिली
यारो सयालां दियां दाढ़ियां वेखदे हो जेही मूंग मंगवाड़ दी मसर फली
वारस शाह मियां धी साहनी नूं गल विच चा पांवदे हैन टली

शब्दार्थ
<references/>