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240 / हीर / वारिस शाह

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होका फिरे देंदा पिंड विच सारे आयो किसे फकीर जे होवना जे
मंग खावना कम्मना काज करना ना कुझ चारना ते ना कुझ चोवना जे
जरा कन्न पड़वा सवाह मलनी गुरु सारे जगत दा होवना जे
नही देनी वधाई फिर जमने दी किसे मोए नूं मूल ना रोवना जे
मंगना खावना ते नाले घूरना जे देनदार न किसे दे होवना जे
खुखी आपनी उठना मियां वारस अते अपनी नींद ही सोवना जे

शब्दार्थ
<references/>