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255 / हीर / वारिस शाह
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जोगी हो लाचार जां मेहर कीती तदों चेलयां बोलियां मारियां ने
जीभा साण चढ़ाय<ref>तेज करना</ref> के गिरद होए जिवें तिखियां तेज कटारियां ने
बेख सोहना रंग जटेटड़े दा जोग देन दियां करन त्यारियां ने
जोग देन ना मूल नमाणयां नूं जिनां कीतियां मेहनतां भारीयां ने
ठरक मुंडयां दे लगे जोगियां नूं मतीं<ref>अकल</ref> जिन्हां दियां रब्ब ने मारियां ने
वारस शाह खुशामदां<ref>चापलूसी</ref> सोहनयां दियां गलां हकदियां नांह नितारियां ने
शब्दार्थ
<references/>