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282 / हीर / वारिस शाह
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सत जनम दे हमी फकीर जोगी नहीं नाल जहान दे सीर मियां
असां खेलियां खपरां नाल वरतन भीख पाय के पाईए वहीर मियां
भला चाहें ना चाक बना सानूं असीं फकर हां जाहरा पीर मियां
नाम मेहरियां दे सानूं डरन आवे रांझा कौन ते केहड़ा हीर मियां
जटा चाक बनाए तूं जोगियां नूं एहो जा आवे सिटूं चीर मियां
जती सती हां हथ दे जोग पूरे सत पीड़ीए जनम फकीर मियां
थर थर कम्बे गुस्से नाल जोगी अखीं रोह पलटया नीर मियां
तुसीं पार समुंदरों रहन वाले भुल गया चेला बखश पीर मियां
वारस शाह दी अरज जनाब अंदर हुण हो नाहीं दिलगीर मियां
शब्दार्थ
<references/>