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283 / हीर / वारिस शाह

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भते बेलयां विच लै जाए जटी पींघां पींघदी नाल पयारियां दे
एह परेम पयालड़ा छकयो ई नयन मसत सन नाल खुमारियां दे
वाहे वंझली ते फिरे मगर लगा सांझ घिन्न केनाल कवारियां दे
जदों वयाह होया तदों वेहड़ बैठी डोली चढ़या नाल खवारियां दे
धारां खांगड़ा दियां झोकां हथोयां दियां मजे यारियां घोल कवारियां दे
मेसां नांरां दियां लाड नडियां दे पुछो हाल न इशक विच मारियां दे
जटी वयाह दिती रिहा नढड़ा तूं सुन्ने सखने टोक पटारियां दे
गुंडन वालियां ईमान शराबियां दे अंत फिरदा ए वांग वगारिां दे
गंुडी रन्न बुढी होई बने हाजन फिरे मोरछड़ गिरद मजारियां दे
बुढा हो के चोर मसीत वड़या रत्न फिरदा ई नाल मदारियां दे
परां जाह जटा मार छडनीगे नहीं छिपदे यार कुआरियां दे
कारीगरी मौकूफ<ref>छड़दे</ref> कर मियां चाका तैंथे वल है पावने झारियां दे

शब्दार्थ
<references/>