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290 / हीर / वारिस शाह

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माही मुंडयो घरी जा कहना जोगी मसत कमला इक आ वड़या
कन्नी ओस दे सेहलियां<ref>रस्सी</ref> मुंदरां ने दाहड़ी पटे भवां मुणा वड़या
किसे नाल कुदरत छल जगलां थीं किसे भुल भुलावड़े आ वड़या
जहां नाऊं मेरा कोई जाए लैंदा रब्ब महांदेव तों दौलतां लया वड़या
वारस कम सोई जेहड़े रब्ब करसी मैं तां उसदा भेजया आ वड़या

शब्दार्थ
<references/>