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293 / हीर / वारिस शाह

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मुठी मुठी ए गल ना करो अड़ीयो मैं तां सुनदयां ही मर गई जे नी
तुसां इक जदाकनी गल टोरी खली<ref>खड़ी</ref> तली ही मैं रूढ़ गई जे नी
गये टुट सतरान<ref>ताकत</ref> ते अकल डुबी मेरे धूह कलेजड़े पई जे नी
कीकूं कन्न पड़ाय के जींवदा ए गलां सुनदयां ई जिंद गई जे नी
उहदा दुखड़ा रोवना जदों सुनयां मुठी मीट<ref>निराश होकर</ref> के मैं बह गई जे नी
मसू भिन्नड़ा<ref>चढ़ती जवानी</ref> जो लैंदियां ने जिंद सुनदयां ई निकल गई जे नी
किवें वेखीए ओस मसतानड़े नूं जैदा धुम त्रिंजणा पई जे नी
वेखां केहड़े देश दा एह जोगी उस तों कौन पयारी रूस गई जे नी
अक पोसत धतूरा ते भंग पी के मौत ओस ने क्यों मुल लई जे नी
जिसदा मां न बाप न भैण भाई कोई कौन करेगा ओसदी सही जे नी

शब्दार्थ
<references/>