भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
307 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:52, 3 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चल जोगीया असीं विखा लयाईए जिथे त्रिंजणी छोहरियां गांदियां ने
लै के जोगी नूं आन विखाइयो ने इके वहुटियां छोप<ref>लड़कियों के मिलकर कातने को छोप कहते हैं</ref> पांदियां ने
इक नचदियां मसत मलंग बनके इक सांग झुहेटी दा लांदियां ने
रंग दी हेम महीन करके वारस शाह नूं गीत सुनांदियां ने
शब्दार्थ
<references/>