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355 / हीर / वारिस शाह

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महबूब अलाह दे लाडले हो एस वहुटड़ी नूं कोई सूल है जी
कोई गुझड़ा रोग है एस धाणा पई नित एह रहे रंजूल<ref>दुःखी बीमार</ref> है जी
हथों लुढी वैंहदीं लाहू लथड़ी है वहुटी हो जांदी मखतूल<ref>पागल</ref> है जी
मुंहों मिठड़ी लाड दे नाल बोले हर किसे दे नाल माकूल<ref>ठीक-ठाक</ref> है जी
मूधा पया है झुगड़ा नित साडा एह वहुटड़ी घरे दा सूल है जी
मेरे वीर दे नाल है वैर एहदा जेहा काफरां दे नाल रसूल है जी
अगे एसदे साहुरे हथ बधी जो कुझ आखदी सब कबूल है जी
वारस पलंघ तों कदी तां उठ बैठे साडे ढिड दे विच डंडूल है जी

शब्दार्थ
<references/>