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359 / हीर / वारिस शाह

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एह विच कुरान दे हुकम होया गल फकर दी नूं नाहीं हसिये नी
जो कुझ कहन फकीर सो रब्ब करदा आखे फकर दे तों नाही नसिये नी
होवे खैर ते देही दा रोग जाये नित पहनीए खावीए वसिये नी
भला बुरा जो देखिये मसट करिये भेत फकर दा मूल ना दसिये नी
हथ बन्ह फकीर ते सिदक कीजे नाही टोपियां सेलियां खसिये नी
दुख दरद तेरे सभे जान कुड़ीए भेत जिऊ दा खोल जां दसिये नी
मुख खेल विखाए तां होवे चंगी आली भोली अयानिये ससिये नी
रब्ब आन सबब जां मेलदा ए खैर हो जांदी नाल लसिये नी
सुलह कीतयां फते जे रब्ब आवे कमर जंग ते मूल ना कसिये नी
तेरे दरद दा सब इलाज मैथे वारस शाह नूं भेद जे दसिवये नी

शब्दार्थ
<references/>