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363 / हीर / वारिस शाह

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तेरी तबा<ref>स्वभाव</ref> चलाक है छैल छिदर<ref>कपटी</ref> चोरां वांग की सेलियां सिलियां नी
पैरीं बिलियां होण फरिंदीयां दे तेरी जीभ हरयारिए बिलियां नी
केहा रोग है दस इस वौहटड़ी नूं अते मारदी है टरपलियां नी
किते एसनूं चा मसान घते पड़ ठोकियां सार दियां किलियां नी
सहंस धूप अते होर फुल हरमल हरे सरिह दियां छमां गिलियां नी
झब करां मैं जतन झड़ जान कामनअनी कमलियो होना ढिलियां नी
हथ फेरके धूप ते करां झाड़ा फेरे नैन ते मार दे खिलियां नी
रब्ब वैद पका घर घलया जे फिरो ढूंढ़दे पूरब दिलियां नी
वारस शाह परेम दी जड़ी घती अखीं हीर दियां कचियां पिलियां नी

शब्दार्थ
<references/>