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394 / हीर / वारिस शाह
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भाबी एस जे गधे दी अड़ी अधी असीं रन्नां भी चैंचल हारियां हां
देह मारया एस जहान ताजा असीं रोज मीसाक<ref>अज़ल का दिन, कायनात का पहला दिन</ref> दियां मारियां हां
जे एह जिद दी छुरी है हो बैठा असीं रन्नां भी तेज कटारियां हां
एह गुंडयां विच है पैर धरदा नहीं बांकियां एस तों डारियां हां
मरद रंग महल हन इशरतां<ref>ऐश, मस्ती</ref> दे असीं जौक<ref>शौक</ref> दे मजे दियां नारियां हां
एस चाक दी कौन मजाल है नी राजे भोज थीं असीं ना हारियां हां
वारस शाह विच हर सफैदपोशां असीं होली दे रंग पिचकारियां हां
शब्दार्थ
<references/>