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410 / हीर / वारिस शाह

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हीरे करां मैं बहुत हया तेरा नहीं मारां सू पकड़ पथलके नी
सभो पान पत एस दी लाह सटां लख वाहरां दये जे घलके नी
जेहड़ा मार चतौड़ गढ़ शाह अकबर ढाह मोरचे लए मुचलके नी
जिउं जिउं शरम दा मारया चुप करां नाल मसतियां आंवदी चलके नी
तेरी पकड़ संघी जिंद कढ छडां मेरे खुस ना जाणगे तुलके नी
भला आख की खटना वटना एं वारस शह दे नाल पिड़ मलके नी

शब्दार्थ
<references/>