भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

414 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:59, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खैर फकर नूं अकल दे नाल दीजे हथ सभल के बुक उलारिए नी
कीजे ऐड हकार ना जोबने दा मान मतीए मस्त हंकारीए नी
कीजे हुसन दा मान ना भाग भरीए छल जासिया रूप विचारीए नी
ठूठा भन्न फकीर दा पटयो ई शाला यार मरे रन्ने डारीए नी
मापे मरन हंकार भज पवे तेरा अनी पिटन दीए वणजारीए नी

शब्दार्थ
<references/>