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414 / हीर / वारिस शाह
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खैर फकर नूं अकल दे नाल दीजे हथ सभल के बुक उलारिए नी
कीजे ऐड हकार ना जोबने दा मान मतीए मस्त हंकारीए नी
कीजे हुसन दा मान ना भाग भरीए छल जासिया रूप विचारीए नी
ठूठा भन्न फकीर दा पटयो ई शाला यार मरे रन्ने डारीए नी
मापे मरन हंकार भज पवे तेरा अनी पिटन दीए वणजारीए नी
शब्दार्थ
<references/>