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431 / हीर / वारिस शाह
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हीर चुप बैठी असीं कुट कढे साडा वाह पया नाल डोरयां<ref>मूर्ख लोग</ref> दे
उह वेलड़ा हथ ना आंवदा ए लोक दे रहे लख ढंडोरयां दे
इक रन्न गई दूज धन गया लोक मारदे नाल निहोरयां दे
धीयां राजयां दे नोहां डाढियां दियां कीकूं हथ आवन बिनां जोरयां दे
असीं खैर मंगया ओनां वैर कीता मैंनूं मारया दे नाल निहोरयां दे
वारस डाडयां दे सौ सत वीहां हाड़े रब्ब दे अगे कमजोरयां दे
शब्दार्थ
<references/>