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432 / हीर / वारिस शाह

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घूआं हूंझदा रोयके आह मारे रब्बा मेलके यार विछोड़यो कयों
मेरा रढ़े जहाज सी आन लगा बने लायके फेर मुड़ बोढ़यों कयों
कोई असां थी वडा गुनाह होया साथ फजल दा लदके मोड़यों कयों
वारस शाह इबादतां छडके ते दिल नाल शैतान दे जोड़यो कयों

शब्दार्थ
<references/>