भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
432 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:06, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
घूआं हूंझदा रोयके आह मारे रब्बा मेलके यार विछोड़यो कयों
मेरा रढ़े जहाज सी आन लगा बने लायके फेर मुड़ बोढ़यों कयों
कोई असां थी वडा गुनाह होया साथ फजल दा लदके मोड़यों कयों
वारस शाह इबादतां छडके ते दिल नाल शैतान दे जोड़यो कयों
शब्दार्थ
<references/>