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430 / हीर / वारिस शाह

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घरों कढया अकल शहूर<ref>सूझ-बूझ</ref> गया आदम जनतों कढ हैरान कीता
सजदे वासते अरश तों मिले धके जिवें रब्ब ने रद शैतान कीता
शदाद<ref>एक ज़ालिम बादशाह</ref> बहिश्त थीं रहया बाहर नमरूद<ref>एक बादशाह का नाम</ref> मछर परेशान कीता
वारस शाह हैरान हो रिहा जोगी जिवें नूर हैरान तुफान कीता

शब्दार्थ
<references/>