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454 / हीर / वारिस शाह

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सच आख रन्ने केही धुमां पाइयां तुसां भोज राजा लती कुटया जे
दहसिर मारया भेत घरोगडे<ref>घर के</ref> दे सने लंका दे उस नूं पुटया जे
कैंरों पांडवां दे कटक कई कूहनी मारे तुसां दे सभ नखुटया जे
कतल होए इमाम करब्बलां अंदर मार दीन वे वारसी सुटया जे
जो कोई शरम हया थी आदमी सी सने जात ते माल दे पुटया जे
वारस शाह फकीर तां नस आया पिछा उसदा कासनूं घुटया जे

शब्दार्थ
<references/>