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457 / हीर / वारिस शाह

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पंड झगड़यां दी कही खोह्ल बैठों वडा महजरी<ref>आडंबरी</ref> ए गूंगा लट-बावला वे
असां इक रसाल<ref>सौगात</ref> है भाल आंदा भला दस खां की है रावला वे
उते रखया की है नजर तरी गिने आप नूं बहुत उतावला वे
दसे बिना ना जापदी जात तेरी छड़े बाझ ना थीवदा चावला वे
की रोक है कासदा एह बासन<ref>बरतन</ref> सानूं दस खां सोहणिआं सांवला वे
सहज नाल सभ कम निरवाह हुंदे वारस शाह ना हो उतावला वे

शब्दार्थ
<references/>