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459 / हीर / वारिस शाह

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सहती खोलके थाल विच धयान कीता खंड चावलां दा थाल हो गया
छुटा तोर फकीर दे मोजजे<ref>करामात</ref> दा विचों कुफर पाजी परे हो गया
जेहड़ा चलया निकल यकीन आहा करामात नूं देख खलो गया
गरम गजब दी आतशों आप आहा बरफ कसफ<ref>राज़ खुलना</ref> दे नाल समो गया
जिस नाल फकीरां दे अड़ी बधी ओह आपना आप वगो गया
पेवे डाढयां माड़यां केहा लेखा ओस खोह लया ओह हो गया
मरन वखत होया सड़ खतम लेखा जो कोई जमया छोह ने छोह गया
वारस शाह जो कीमिया<ref>पारस</ref> नाल छूता सोना तांबयों तुरत ही हो गया

शब्दार्थ
<references/>