भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
459 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:20, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सहती खोलके थाल विच धयान कीता खंड चावलां दा थाल हो गया
छुटा तोर फकीर दे मोजजे<ref>करामात</ref> दा विचों कुफर पाजी परे हो गया
जेहड़ा चलया निकल यकीन आहा करामात नूं देख खलो गया
गरम गजब दी आतशों आप आहा बरफ कसफ<ref>राज़ खुलना</ref> दे नाल समो गया
जिस नाल फकीरां दे अड़ी बधी ओह आपना आप वगो गया
पेवे डाढयां माड़यां केहा लेखा ओस खोह लया ओह हो गया
मरन वखत होया सड़ खतम लेखा जो कोई जमया छोह ने छोह गया
वारस शाह जो कीमिया<ref>पारस</ref> नाल छूता सोना तांबयों तुरत ही हो गया
शब्दार्थ
<references/>