भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
464 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:21, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सानूं बखश अलाह दे नाम मियां साथों भुलयां एह गुनाह होया
कचा शीर पीता वंदा सदा भुले धुरों आदमों भुलना राह होया
आदम भुल के कणक नूं खा बैठा झट जंनतों हुकम फनाह होया
शैतान उसताद फरिशतयां दा भला सजदयों किधर दे राह होया
मुढों रूह भला कौल दे वड़या जुसा छड के अंत फनाह होया
कारूं भुल जकात थी शुभ होया वाहद ओस ते कहर अलाह होया
भुल जिकरीए लई पनाह होजम<ref>सूखी लकड़ी, ईंधन</ref> आरी नाल उह चोर दोफाह होया
अमलां बाझ दरगाह विच पैण पौले लोकां विच मियां वारस शाह होया
शब्दार्थ
<references/>