भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
467 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:21, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
फिरे जोम<ref>घमंड</ref> दी भरी ते शाण चड़ी आ टली नी मुंडिए<ref>लड़की</ref> वासता ई
मरद-मार रकाने जग बाजे मान मतिये गुंडिए वासता ई
बखशी सब गुनाह तकसीर तेरी लिया हीर नूं नडिये वासता ई
वारस शाह समझाय के जटड़ी नूं लाह दिल दी घुंडिए वासता ई
शब्दार्थ
<references/>