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474 / हीर / वारिस शाह

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रांझा वेख के आखदा परी कोई इके भावे तां हीर सयाल होवे
कोई हीर कि मोहनी इंदरानी हीर होवें तां सइयां दे नाल होवे
नेड़े आयके कालजा धा गई जिवें मसत कोई नशे दे नाल होवे
रांझा आखदा अबरे<ref>बादल</ref> बहार आया जंगलां भी लाली लाल होवे
हाठां जोड़<ref>घटा का घिरके आना</ref> बदलां हांझ बधी वेखां केहड़ा देस निहाल होवे
चमक लैलातुल कदर<ref>रमजान की एक रात जब इबादत का भारी सवाब</ref> सयाह-शबथी जिसते पवगी नदर निहाल होवे
डील डाल ते चाल दी लटक सुंदर जेहा पेखने दा कोई खयाल होवे
यार सोई महबूब ते फिदा होवे जी सोई जो मुरशदां नाल होवे
वारस शाह आ चंबड़ी रांझने नूं जेहा गधे दे गल विच लाल होवे

शब्दार्थ
<references/>