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480 / हीर / वारिस शाह
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तुसी मेहर करो असीं घरी जाईए नाल सहती दे डाल बनाईए जी
बहर<ref>समुद्र</ref> इशक दा खुशक गम नाल होया नाल अकल दे मीह वरसाईए जी
किवें करां मैं कोशशां अकल दियां तेरे इशक दियां पूरीया पाईए जी
जां तयारियां टुरन दियां झब करिए असीं सजनों हुकम कराईए जी
हजरत सूरत इखलास<ref>कुरान की एक सत्र</ref> लिख दयो मैंनूं कुर्रा<ref>ज्योतिष</ref> फाल<ref>पासा फैंकना</ref> नजूम दा पाईए जी
खोल फाल-नामा ते दीवान हाफज वारस शाह तों फाल कढाईए जी
शब्दार्थ
<references/>